Saturday, 6 October 2007
कर्नाटक में नाटक
बीस माह पुराणी भाजपा और ज़द एस गंठबंधन का अकाल मौत आख़िर हो ही गया। इस गठबंधन के बनते समय और अब दोनो वक्त देवेगौरा ने एक कुशल अवसरवादी राजनीतीक निर्देशक की भूमिका निभाई। इस गठबंधन के बनते समय देवेगौरा ने अपने को अलग रखकर भाजपा से निकटता का दाग ना लगे , यह दिखाने की कोशिश की थी और अब जब बीस माह का ज़द एस का राजनीतिक सौदा का समय पुरा हो गया तो भाजपा को सत्ता सौंपने से इंकार कर अपने रंगीन चेहरे को सामने ला दिया। ऎसी अवसरवादी राजनीती लोकतंत्र के लिए कहीं से फायदेमंद नहीं है। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के कंधे पर सवार होकर सत्ता सुख भोगने की लिप्सा छोर देवेगौरा को सीधे जनता से मुखातिब होना चाहिऐ।
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3 comments:
hi deepak very nice effort by you.
you have explained that how our politicians are proving dangerous for democracy.due to these politicians our democracy is going in to the peril.but since last year we are looking many changes around us.perhaps,scene may be changed.
manish raj
on karntka issue your concise comment is markable.PRANAV
DEAR DEEPAK
I VISITED YOUR BLOGSPOT AND ITS REALLY GREAT FROM YOU. PLEASE KEEP IT ON
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