Sunday, 27 April 2008

दायित्व

जब जिम्मेदारी बढ़ जाती है तो दायित्य भी बढ़ जाता है । कुछ ऐसा ही हम नेपाली मओवादिओं के वारे में कह सकते है क्योंकि आजकल कुछ ऐसा ही पटना में चल रहे कवायदों से मालूम परता है। यदि नेपाली माओवादियों का भारत सरकार के साथ अच्छा सम्बन्ध बनता है तो यह अपने यहाँ के माओवादियों के लिए एक सबक होगा की बंदूक छोर bailet पर विश्वास करें। ऐसी कोई सरकार नहीं होगी की उनके साथ अच्छा सलूक न करे। आज के दुनिया में आप बंदूक के बल पर कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। जिस माओ के सिधांत को माओवादी मानते हैं उस माओ के चीन में ख़ुद उस सिधांत का कोई पूछ नहीं। सायद चीन वासी जल्दी समझ गए की बेतुकी सिधांत से अच्छा है जीवन को आगे बढाने वाला नुस्खा अपनाया जाय। बुद्धि वाला मानव वही कहलाता है जो दुनिया के साथ कदम मिलकर चलता है। तो भारतीय माओवादियों आप की बुद्धि कब रस्ते पर आएगी।

Wednesday, 23 April 2008

अमेरिकी चुनाव

तो भाई भाडासिओं हिलेरी और ओबामा का टक्कर कैसा लग रहा है । बड़ा आश्चर्य हुआ की अब तक अपना भड़ास अमेरिकी चुनाव पर अपना थोड़ा सा भी भड़ास नहीं निकला । सोचा की आपुन से ही शुरू करूं................ आम लोगों को लगता होगा की जब एक ही पार्टी के white एंड ब्लैक की टक्कर हो रही है तो सचमुच में अमेरिका अब बंट जाएगा लेकिन इस मुगालते में कोई मत रहे की डेमोक्रेट के जित जाने से इराकी कत्ले आम रुक जाएगा या भारत को विदेश निति पर नसीहत देने की आदत छुट जायेगी । दुनिया वालों जरा देखो की अपने दलीय चुनाव में जीतने के लिए जिस तरह सुगर के लीड की तरह का आरोप का सहारा लिया जाता है तो तीसरी दुनिया के भइया लोगों आपको हांकने के लिए कुछ भी किया जायेगा। बड़ा सुकून वाला ख़बर आजकल चल रहा है की अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कालाजार होने वाला है जबकि भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों को अभी तक सिर्फ़ छींक ही आए है वो भी ठीक होने वाली । मैं तो उस दिन के लिए बैठा हूँ जब दुनिया के अर्थव्यवस्था की लगाम हिन्दी चीनी कम तीसरी दुनिया के देश के हाथ में हो । बुश की पार्टी जीते या डेमोक्रेट इससे अमेरिकी दादागिरी पर फर्क परने वाला नहीं । तो देखता हूँ आज से अपना भड़ास भी हिलेरी ओबामा और मैकेन रंग के असर पर कुछ करता है या चुप...................................

Sunday, 20 April 2008

आई पी एल

धूम मस्ती दीवानगी आदि आदि का मिश्रण है आई पी एल । ललित मोदी का दिमाग और सुभाष चन्द्रा द्वारा दी गई परोक्ष चुनौती ने बीसीसीआई को भी मुकाबले के लिए विवश किया। पैसे की चमक ने तमाम विदेशी खिलारिओं को आई पी एल में खेलने के लिए बाध्य किया चाहे इसके लिए उन्हें अपने देश के लिए बगावत भी क्योंना करना पड़े । पैसा जो न करे । भाई आज golblisation का दौड़ में आप किसी को बाँध कर नहीं रख सकते। कुछ बुढे पर गए खिलाड़ी जैसे मियांदाद टाइप लोग जिनको भारत की क्रिक्केतिया तरक्की फूटी आँख नहीं सुहा रही । मान लिया की आज कल भारत पाकिस्तान को पीट रहा है तो इसमें अपना क्या दोष है । २० २० की हार अभी तक नहीं भूले तो मत भूलो लेकिन उदई भारत से जलो मत और भी white टाइप लोगों। कुछ तो सोचो की आज का भारत जवान है और जवानों को रोकना ...... मतलब सोचलो। यदि भारत आई सी सी को हांकता है तो इसमे क्या गलती है । कहतें हैं की जल में रहकर मगर से बैर । सारा पैसा का अस्सी प्रतिशत विश्वा क्रिकेट को भारत से तो क्यों ना चले मेरा............