tag:blogger.com,1999:blog-26310967995860549862024-03-18T21:59:27.098-07:00JAN JAGRUKTA'PUBLIC-CONSCIOUSNESS' THIS WORD HAS POWER TO CHANGE SOCIETY AROUND US.IT'S MY SHORT EFFORT TO CHANGE SOMETHING IN LAW MAKERS VIEW.NOT ONLY FOR BEGUSARAI BUT WHOLE WORLD.DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-36692366198966502332008-06-28T07:59:00.000-07:002008-06-28T08:32:59.612-07:00ख़बर की सनसनी<div align="justify"><span style="font-size:130%;color:#3366ff;">बहुत हो गया अब तो बस करो अरुशी हेमराज मसाला को भूनना । क्या मेट्रो शहर की हर ख़बर राष्ट्रीय समाचार होती है जब की छोटे शहर की महत्वपूर्ण ख़बर भी गुमनामी के बीच खो जाती है। ये माना की मिडिया जागरूकता लाती है खासकर सोए समाज को किंतु यदि जगाने में भोंपू बजा बजा कर हल्ला मचाया जाता है तो यह उसकी ख़बर न मिलने की हताशा को दर्शाती है। जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के एक ग्रुप ने जी जान लगाकर आरुशी हेमराज हत्याकांड को फोकस किया वह समाज को क्या देगा। एक सीरियल के जुर्म एपिसोड की तरह मेट्रो दर्शक इस ख़बर को देखे । टी आर पी बढ़ी । विज्ञापन बढ़ा। क्या यही थी मिडिया की हकीकत। छोटे छोटे शहर की एक भी ख़बर यदि राष्ट्रीय समाचार बन गए तो यह उस ख़बर की खुस्किस्मती होती है। मैं प्रिंट मिडिया के एक कस्बाई पत्रकार के बारे में बता रहा हूँ जिनका मकसद अख़बार को पैसा वसूलने का माध्यम के तौर पर पेस करना है। हुआ खछ यूँ की खगरिया जिले के बेलदौर प्रखंड में NREGA के तहत सड़क बन रही है जिसमें धांधली अपने चरम सीमा पर है। हिंदुस्तान के लोकल पत्रकार ने इस ख़बर की रिपोर्टिंग की । अगले दिन यह ख़बर हिंदुस्तान के स्थानीय पेज पर सुर्खी थी। पुनः अगले दिन उन्ही पत्रकार बंधू के उसी ख़बर की रिपोर्टिंग की गई किंतु अंदाज़ बदला हुआ था । आज यह ख़बर मुख्य पेज पर आई। उसी योजना के बारे में लिखा था बहुत अच्छी सड़क बनाई गई है। कल यही सड़क ख़राब थी और आज अच्छी हो गई। दरअसल यह कमाल था मनी का यानी मोटी गड्डी । देने वाला था वहां को कार्यक्रम पदाधिकारी।<br /> तो कुल मिलाकर मेट्रो से लेकर लोकल स्तर तक के पत्रकारिता की झलक । </span></div>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-2808113146456919272008-04-27T08:22:00.000-07:002008-04-27T08:23:03.259-07:00दायित्व<div align="justify"><span style="color:#3366ff;">जब जिम्मेदारी बढ़ जाती है तो दायित्य भी बढ़ जाता है । कुछ ऐसा ही हम नेपाली मओवादिओं के वारे में कह सकते है क्योंकि आजकल कुछ ऐसा ही पटना में चल रहे कवायदों से मालूम परता है। यदि नेपाली माओवादियों का भारत सरकार के साथ अच्छा सम्बन्ध बनता है तो यह अपने यहाँ के माओवादियों के लिए एक सबक होगा की बंदूक छोर bailet पर विश्वास करें। ऐसी कोई सरकार नहीं होगी की उनके साथ अच्छा सलूक न करे। आज के दुनिया में आप बंदूक के बल पर कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। जिस माओ के सिधांत को माओवादी मानते हैं उस माओ के चीन में ख़ुद उस सिधांत का कोई पूछ नहीं। सायद चीन वासी जल्दी समझ गए की बेतुकी सिधांत से अच्छा है जीवन को आगे बढाने वाला नुस्खा अपनाया जाय। बुद्धि वाला मानव वही कहलाता है जो दुनिया के साथ कदम मिलकर चलता है। तो भारतीय माओवादियों आप की बुद्धि कब रस्ते पर आएगी। </span></div>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-72001916038135600762008-04-23T02:33:00.000-07:002008-04-23T02:35:10.957-07:00अमेरिकी चुनाव<div align="justify"><strong><span style="color:#ff0000;">तो भाई भाडासिओं हिलेरी और ओबामा का टक्कर कैसा लग रहा है । बड़ा आश्चर्य हुआ की अब तक अपना भड़ास अमेरिकी चुनाव पर अपना थोड़ा सा भी भड़ास नहीं निकला । सोचा की आपुन से ही शुरू करूं................ आम लोगों को लगता होगा की जब एक ही पार्टी के white एंड ब्लैक की टक्कर हो रही है तो सचमुच में अमेरिका अब बंट जाएगा लेकिन इस मुगालते में कोई मत रहे की डेमोक्रेट के जित जाने से इराकी कत्ले आम रुक जाएगा या भारत को विदेश निति पर नसीहत देने की आदत छुट जायेगी । दुनिया वालों जरा देखो की अपने दलीय चुनाव में जीतने के लिए जिस तरह सुगर के लीड की तरह का आरोप का सहारा लिया जाता है तो तीसरी दुनिया के भइया लोगों आपको हांकने के लिए कुछ भी किया जायेगा। बड़ा सुकून वाला ख़बर आजकल चल रहा है की अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कालाजार होने वाला है जबकि भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों को अभी तक सिर्फ़ छींक ही आए है वो भी ठीक होने वाली । मैं तो उस दिन के लिए बैठा हूँ जब दुनिया के अर्थव्यवस्था की लगाम हिन्दी चीनी कम तीसरी दुनिया के देश के हाथ में हो । बुश की पार्टी जीते या डेमोक्रेट इससे अमेरिकी दादागिरी पर फर्क परने वाला नहीं । तो देखता हूँ आज से अपना भड़ास भी हिलेरी ओबामा और मैकेन रंग के असर पर कुछ करता है या चुप...................................</span></strong></div>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-89745100700496271672008-04-20T08:52:00.000-07:002008-04-20T08:56:50.277-07:00आई पी एल<span style="font-size:180%;color:#cc0000;">धूम मस्ती दीवानगी आदि आदि का मिश्रण है आई पी एल । ललित मोदी का दिमाग और सुभाष चन्द्रा द्वारा दी गई परोक्ष चुनौती ने बीसीसीआई को भी मुकाबले के लिए विवश किया। पैसे की चमक ने तमाम विदेशी खिलारिओं को आई पी एल में खेलने के लिए बाध्य किया चाहे इसके लिए उन्हें अपने देश के लिए बगावत भी क्योंना करना पड़े । पैसा जो न करे । भाई आज golblisation का दौड़ में आप किसी को बाँध कर नहीं रख सकते। कुछ बुढे पर गए खिलाड़ी जैसे मियांदाद टाइप लोग जिनको भारत की क्रिक्केतिया तरक्की फूटी आँख नहीं सुहा रही । मान लिया की आज कल भारत पाकिस्तान को पीट रहा है तो इसमें अपना क्या दोष है । २० २० की हार अभी तक नहीं भूले तो मत भूलो लेकिन उदई भारत से जलो मत और भी white टाइप लोगों। कुछ तो सोचो की आज का भारत जवान है और जवानों को रोकना ...... मतलब सोचलो। यदि भारत आई सी सी को हांकता है तो इसमे क्या गलती है । कहतें हैं की जल में रहकर मगर से बैर । सारा पैसा का अस्सी प्रतिशत विश्वा क्रिकेट को भारत से तो क्यों ना चले मेरा............ </span>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-10030489476661683202008-03-07T08:31:00.001-08:002008-03-07T08:32:22.066-08:00राय देमैं भड़ास के लेखकों से अनुरोध करता हूँ की वे अपना ध्यान उन नेताओं के करनी कथनी पर भी जरुर लगाएं जो जनता के नजर में अपने को बहुत बड़ा तारनहार के रूप में पेश करते हैं । पिछ्लें दिनों मैनें एक लेख भड़ास पर डाला था जिसमें नरेगा की कुछ खामिओं और हकीकत के बारे में बताया था । मैं चाहता हूँ की आप उन नेताओं का जरुर पर्दाफास करें जो इस रोजगार देने वाले कानून को सीढी बनाकर चुनावी बेरा को को पर लगना चाहते हैं। इक तो मजदूरों को अनिश्चित काम और उसको संचालित करने वाले कर्मिओं को ठेका की नौकरी । क्या यह चल सकता है। चाहे बिहार सरकार हो या केन्द्र सरकार इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती की सौ दिन के काम से ही एक परिवार को गुजरा हो सकता है क्या ठेके के कर्मी इस योजना को क्योंकर सफल बानाने की कोसिस करें । अपेक्षित टिप्पणी ।DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-3202829644974122102008-03-07T08:09:00.000-08:002008-03-07T08:26:42.637-08:00आपकी राय<strong><span style="color:#ff6600;">मैं भड़ास के लेखकों से अनुरोध करता हूँ की वे अपना ध्यान उन नेताओं के करनी कथनी पर भी जरुर लगाएं जो जनता के नजर में अपने को बहुत बड़ा तारनहार के रूप में पेश करते हैं । पिछ्लें दिनों मैनें एक लेख भड़ास पर डाला था जिसमें नरेगा की कुछ खामिओं और हकीकत के बारे में बताया था । मैं चाहता हूँ की आप उन नेताओं का जरुर पर्दाफास करें जो इस रोजगार देने वाले कानून को सीढी बनाकर चुनावी बेरा को को पर लगना चाहते हैं। इक तो मजदूरों को अनिश्चित काम और उसको संचालित करने वाले कर्मिओं को ठेका की नौकरी । क्या यह चल सकता है। चाहे बिहार सरकार हो या केन्द्र सरकार इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती की सौ दिन के काम से ही एक परिवार को गुजरा हो सकता है क्या ठेके के कर्मी इस योजना को क्योंकर सफल बानाने की कोसिस करें । अपेक्षित टिप्पणी । </span></strong>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-67653182226712323642008-02-14T04:22:00.000-08:002008-03-30T08:05:14.267-07:00मराथागिरीबहुत हो गया राज भाई । आज शिवाजी होते <span class="">तो </span>सबसे पहले तुम्हें ही अपनी गुरेल्ला युद्ध का शिकार बानाते क्योंकि तुमने उस राष्ट्रवाद <span class="">को </span><span class="">मारना </span>प्रारम्भ किया है जिसके लिए उन्होंने मुगलों के खिलाफ <span class="">जान </span>तक को दाव पर लगा दिया था । यदी तुम्हें मराठा मानुस की इतनी ही फिकर है तो क्यों नहीं विदर्भ के किसानों के लिए कुछ करते हो जो मरकर भी अपना कर्ज चुका नहीं <span class="">पाते । </span>जिस बिहारी कामगारों को तुम अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए बेरोजगार मराठी युवकों को अपनी सेना बनाकर पिटवा रहे हो उन सेनाओं को उन्हीं बिहारी लोगों से यह क्यों नहीं कहते सिखने को जो अपनी मेहनत की कमाई खाते हैं और इस देश के लिए connecting india का रियल रोल अदा करतें हैं। मुम्बई किसी की जागीर नहीं । पूरे देश की जान है। अच्छा होगा यदि सारे दल इस राज टाइप गुंडा गर्दी से और उसके चाचा सीनियर ठाकरे के मुह्फत बयानों पर लगाम लगाने के सार्थक कोशिश करें। सबसे सस्ती जान बिहारी लोगों की ही नहीं है जिसको जब जहाँ मन हुआ वहीं धो दिए।DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-37011579850732143502008-01-06T05:14:00.000-08:002008-01-06T05:33:18.882-08:00क्रिकेट<div align="left"><span style="color:#ff6600;"><strong>आज भले ही भारत हर गया हो लेकिन इस हर में आस्ट्रेलिया के ग्यारह खिलारी के अलावे दो एम्पायर भी साथ थे। बकनर को तो भारत के खिलाफ मैच में जैसे नशा ही चढ़ जाता है कि जो भी निर्णय देना है वह इंडिया के खिलाफ दूंगा । सचिन आउट नहीं है तो क्या मैं हूँ ना । बकौल बकनर । अरे कुछ भी कर लो भारतीय गेंदबाज बकनर आपके पक्ष में फैसला देने वाला नहीं। आस्ट्रेलिया को मैच जीतने पर जो पैसा मिलता है उसका बारहवां हिस्सा बकनर का भी बनता है। आस्ट्रेलिया को हराना है तो आपको बकनर जैसों से बचना होगा। क्या होता यदि सिमंड्स आउट होता पहली पारी में और आस्ट्रेलिया २०० के अन्दर पहली पारी में सिमट जाता और भारत को ३०० से अधिक रन की बढ़त मिलती । फिर दूसरी पारी को मिलाकर भी आस्ट्रेलिया नहीं जीतता । आज भारत टेस्ट मैच जीत जाता क्योंकि इसे लगभग १०० रन बनाना होता। खैर आगे जरुर इन्साफ होगा। </strong></span></div>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-76477073978221970722007-10-24T02:29:00.000-07:002007-10-24T02:50:04.292-07:00बिजली की आँख मिचौली<span style="color:#3333ff;">उर्जा मंत्री बिहार , के गगनभेदी आश्वाशन की, बेगुसराय में छात्रों के लिए शाम छः से दस बजे रात्री तक हर हाल में बिजली दी जायेगी किन्तु यह आश्वाशन दपोर्शंखी साबित हुआ।यह कैसी विडंबना है की जहाँ बिजली उत्पादन होता है उस जिले को बिजली का रोना रोना परता है । भले ही बेगुसराय के लोग तमाम आधुनिक सुविधाओं को जुटाने की क्षमता रखते हों , किन्तु उनका यह शौक बिन बिजली सब सुन रहता है। हमारे संसद जो सिर्फ वोट के यार हैं , काहे को ध्यान देंगे की काम से कम आधे दिन की भी बिजली बेगुसराय को मिले। शहर में बहुत सायबर कैफे हैं किन्तु सब बिजली का ही रोना रोते हैं । यहाँ की जनता को अब इंतजार छोर क्रांति की राह चुनना होगा क्योंकि इसके बिना कम नहीं होने वाला । ऐसा करना गलत भी नहीं होगा क्योंकि सारा आश्वासन फेल हो चुका है। </span>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-31761217384224200902007-10-14T07:39:00.000-07:002007-10-14T08:57:26.024-07:00अवसरवादी राजनीतीभारतीय राजनीती में सौदेबाजी का नजारा किसी शब्जी विक्रेता और ग्राहक के बीच के मोल भाव से कम नहीं होता। जब संप्रग की सरकार बन रही थी तो उस समय वामपंथियों के बाहरी समर्थन ने इसे बहुमत दिलवाया था जबकि कांग्रेस और वामपंथी केरल बंगाल और त्रिपुरा में सीधे एक दुसरे के खिलाफ थे और जब सरकार बनाने की बारी आई तो दोनो गले मिल गए जैसे कि सुबह के बिछुरे शाम को घर पर एक साथ आए हो । कुछ दिनों तक वाम और कांग्रेस एक ही गले से दो आवाज बोल रहे थे किन्तु धीरे धीरे कांग्रेस का अपना एजेंडा खुलता चला गया, वाम के सुर भी बदलने लगे। नटवर सिंह की जिस तरह विदाई हुई क्योंकि अमेरिका विरोधी मानसिकता के कारन वामपंथी इन्हें अपने अनुकूल मानते थे और वाम धारा समर्थक मणिशंकर अय्यर से पेट्रोलियम मंत्रालय लिया जाना कांग्रेस द्वारा वामपंथियों को परोक्ष चुनौती थी कि मेरा अपना एजेंडा है जो आपके दवाब पर नहीं चलेगा। फिर भारत अमेरिका परमाणु समझौता जब अपनी सफ़लता की राह पर अग्रसर रहा तो अब वामपंथियों ने इसे सीधे अपने विचारधारा और नीति पर चोट माना और समर्थन वापसी कीं बात की बयार चला दीं।<br /> ये सब तो हुआ नाटक का दर्शक पहलू किन्तु जिस मुद्दे को उठाकर कांग्रेस सत्ता में आयी और वामपंथियों ने अपने राज्य में जनता से अपार समर्थन पाकर लोकसभा सदस्य जीते , क्या उस मुद्दे का समाधान हुआ ? नहीं , क्योंकि जिस कहानी का मंचन किया जाना था वह गुम हो गया। भारत गेहूँ निर्यातक से आयातक बन गया वह भी अपने किसानो को दिए जाने वाले मुल्य से दोगुने पर। बेरोजगारी दूर करने के उपायों के बदले सिर्फ हवाई घोषणा की गई और पिछरों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के बदले आरक्षण का कार्ड खेलकर जातिवाद की हवा को और टूल दिया गया। बेचारे मुस्लमान तो सिर्फ समिती और आयोग के चक्कर में ही रह गए। पीछले तीन वर्षों में मंहगाई तीन गुनी बढ़ी किन्तु मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत से कम दिखाया जाता है अखिर आम जनता को एस इस सरकार प्रायोजित मुद्रा स्फीति से क्या मतलब । उसे तो आता चावल का भाव उसकी कमाई के अस्तित्व की जानकारी दे देते हैं। आन्तरिक उग्रवाद तो अब अपनी सीमा लाँघ चूका है । देश का २०० जिला नक्सल पीड़ित है। किसानो की आत्महत्या रोकने के उपाय के वादों के साथ यह सरकार सत्ता में आई किन्तु किसान मृत्यु दर बढती ही जा रही। कहने को तो प्रधानमंत्री के अधीन उसका मंत्री होता है किन्तु अपने मंत्रियों पर प्रधानमंत्री की थोरी सी भी चल पाती है? ये सारे मुद्दे हैं जिसका जवाब जनता मांगेगी। नेता बदलने से आम जनता की मांग नहीं बदल जाती। परमाणु मुद्दे पर प्रधानमंत्री का ताजा बयान देश को गुमराह करने वाला है । कल तक परमाणु समझौता पर सरकार की बलि तक देने वाले आज यह बोल रहे की अब इस समझौते के ऐवज में सरकार नहीं जायेगी । शायद कांग्रेस गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणाम तक रूक कर अपनी स्थिती को देखना चाहे । यदी अभी चुनाव हो जाये तो सत्ता पक्ष की हालत क्या होगी?DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-91303823292056529792007-10-06T06:37:00.000-07:002007-10-06T07:10:14.929-07:00कर्नाटक में नाटक<span style="color:#3333ff;">बीस माह पुराणी भाजपा और ज़द एस गंठबंधन का अकाल मौत आख़िर हो ही गया। इस गठबंधन के बनते समय और अब दोनो वक्त देवेगौरा ने एक कुशल अवसरवादी राजनीतीक निर्देशक की भूमिका निभाई। इस गठबंधन के बनते समय देवेगौरा ने अपने को अलग रखकर भाजपा से निकटता का दाग ना लगे , यह दिखाने की कोशिश की थी और अब जब बीस माह का ज़द एस का राजनीतिक सौदा का समय पुरा हो गया तो भाजपा को सत्ता सौंपने से इंकार कर अपने रंगीन चेहरे को सामने ला दिया। ऎसी अवसरवादी राजनीती लोकतंत्र के लिए कहीं से फायदेमंद नहीं है। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के कंधे पर सवार होकर सत्ता सुख भोगने की लिप्सा छोर देवेगौरा को सीधे जनता से मुखातिब होना चाहिऐ।</span>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2631096799586054986.post-49738076552251799642007-09-28T03:07:00.000-07:002008-11-13T05:09:43.499-08:00नई दुनिया मे आपका स्वागत है।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPH1FahucOd_jbOJk3NjK4TY-t_SCMcFx_Obi2IJlku7Z3NEKknlicgURBHlJcPdHAJGuruegPiVOchz9VfT1SslnaRj2vFmNDjiWUfJc14pQolKkWVDUVrORexYd801gVnqrDULTijZs/s1600-h/god0a.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5115198066297617986" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPH1FahucOd_jbOJk3NjK4TY-t_SCMcFx_Obi2IJlku7Z3NEKknlicgURBHlJcPdHAJGuruegPiVOchz9VfT1SslnaRj2vFmNDjiWUfJc14pQolKkWVDUVrORexYd801gVnqrDULTijZs/s200/god0a.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-family:arial;color:#3366ff;">बेगुसराय के पत्रकारिता इतिहास मे ब्लोग लेखन की सक्रियता को देखकर मैं आकर्षित हुआ। यह मेरा पहला प्रयास है, आप बुध्हिजीवियों से अभ्यर्थना है कि मेरे प्रयास पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें । </span></div><br /><div><span style="font-family:Arial;color:#3366ff;">आपके टिप्पणी के इंतज़ार में ........................................</span></div>DEEPAKhttp://www.blogger.com/profile/15694522907079841360noreply@blogger.com2