Friday, 7 March 2008
राय दे
मैं भड़ास के लेखकों से अनुरोध करता हूँ की वे अपना ध्यान उन नेताओं के करनी कथनी पर भी जरुर लगाएं जो जनता के नजर में अपने को बहुत बड़ा तारनहार के रूप में पेश करते हैं । पिछ्लें दिनों मैनें एक लेख भड़ास पर डाला था जिसमें नरेगा की कुछ खामिओं और हकीकत के बारे में बताया था । मैं चाहता हूँ की आप उन नेताओं का जरुर पर्दाफास करें जो इस रोजगार देने वाले कानून को सीढी बनाकर चुनावी बेरा को को पर लगना चाहते हैं। इक तो मजदूरों को अनिश्चित काम और उसको संचालित करने वाले कर्मिओं को ठेका की नौकरी । क्या यह चल सकता है। चाहे बिहार सरकार हो या केन्द्र सरकार इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती की सौ दिन के काम से ही एक परिवार को गुजरा हो सकता है क्या ठेके के कर्मी इस योजना को क्योंकर सफल बानाने की कोसिस करें । अपेक्षित टिप्पणी ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
दीपक जी,
क्या कहेंगे किसको यहां तो कूपहिं में भंग पड़ी है. किसानों के साठ हजार माफ करने की घोषणा आम बजट में करते हैं, यह उनकी पंचवर्षीय योजना हो जाती है. दिल्ली में फ्लाई ओवर बनाने में तीस हजार करोड़ खर्च करते हैं चूं भी नहीं निकलती है और जब किसानों की बात आती है तो ढोल पीटते फिरते हैं. हद हो गई. रहने दो भद्द पिट गई.
Post a Comment